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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।

अथवा
बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बौद्ध शिक्षा व्यवस्था के उद्देश्य व विधि बताइए।
2. बौद्धकालीन शिक्षा की विशेषतायें बताइए।
3. वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।

उत्तर-

बौद्ध धर्म की उन्नति तथा विकास के युग में बौद्ध शिक्षा व्यवस्था की उन्नति तथा विकास पर ध्यान दिया गया। छठी शताब्दी ई० पूर्व में वैदिक धर्म में अनेक दोष उभर कर सामने आये, जिन कारण बौद्ध धर्म को उन्नति करने का अवसर मिला तथा बौद्ध धर्म की उन्नति के साथ-साथ बौद्ध शिक्षा की भी उन्नति हुई।

डॉ० आर० के० मुखर्जी के शब्दों में  - "बौद्ध शिक्षा प्रचीन हिन्दू अथवा ब्राह्मणीय शिक्षा प्रणाली का केवल एक रूप है।"

बौद्ध शिक्षा व्यवस्था के प्रमुख उद्देश्य इसके निम्नलिखित उद्देश्य थे-

1. निर्वाण प्राप्ति में सहायता करना,
2. अच्छे चरित्र का निर्माण,
3. सामाजिक कुशलता की वृद्धि,
4. राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण।

बौद्ध शिक्षा विधि - बौद्ध शिक्षा व्यवस्था में निम्नलिखित विधियाँ प्रचलित थीं-

1. मौखिक विधि
2. व्यक्तिगत विधि
3. समस्या विधि,
4. स्वाध्याय तथा स्वयं अन्वेषण विधि,
5. वाद-विवाद तथा शास्त्रार्थ विधि,
6. व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक विधि,
7. व्याख्या विधि,
8. प्रश्नोत्तर, व्यवस्था, कथा विधि,
9. अग्रशिष्य शिक्षण विधि।

बौद्धकालीन शिक्षा - छठी शताब्दी ई० तक पहुंचते-पहुंचते वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था में अनेक प्रकार के दोष भी पैदा हो गये थे तथा धर्म सम्बन्धी सिद्धान्तों की जड़ें तक हिल चुकी थी तथा उनमें भी अनेक कर्मकाण्डों का चलन प्रचलित हो चुका था, देवी-देवताओं की खुशी के लिए पशुबलि एवं नरबलि का प्रचार तेजी के साथ बढ़ चुका था। भारतीय समाज में ब्राह्मणों का महत्व आकाश को छूने लगा था, भारतीय शिक्षा के आकाश पर ब्राह्मण वर्ग के लोग पूर्णरूप से छा गये थे। ब्राह्मणों के प्रबल अधिकारों के कारण साधारण भारतीय जनता में असंतोष पैदा हो चुका था। इस समय महात्मा बुद्ध ने भारतीय समाज तथा शिक्षा के क्षेत्र में जो दोष उत्पन्न हो गये थे, उसको दूर करने के लिए बीड़ा उठाया। महात्मा ने जाति-भेदभाव को पसन्द नहीं किया, सबको एक समान समझा। कर्मकांड के स्थान पर अहिंसा को खड़ा किया। सदाचार तथा पवित्र जीवन पर बल दिया। इनके इन सिद्धान्तों का प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा। नई शिक्षा प्रणाली उभर कर सामने आई, जिसको बौद्ध शिक्षा प्रणाली के नाम से पुकारा गया। यह शिक्षा प्रणाली एक प्रकार से वैदिक शिक्षा प्रणाली से काफी भिन्न रूप में थी। फिर भी दोनों शिक्षा प्रणालियों में समानताओं की भी झलकियाँ थीं। बौद्ध शिक्षा प्रणाली वैदिककालीन प्रणाली तथा ब्राह्मण शिक्षा प्रणाली का बदला रूप था। शुरू-शुरू में बौद्ध शिक्षा प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म का प्रचार करना तथा इस धर्म को उन्नति देना था। बाद में इस शिक्षा प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य सांसारिक जीवन को सफल बनाना हुआ। शुरू-शुरू में बौद्ध धर्म का विकास तथा उन्नति संघ के रूप में हुई। अतः बौद्ध शिक्षा के केन्द्र संघ बने। बौद्धकालीन भारत में वैदिक यज्ञों का स्थान संघों ने ले लिया तथा बौद्ध संघ बने। बौद्धकालीन भारत में वैदिक यज्ञों का स्थान संघों ने ले लिया तथा बौद्ध संघ की शिक्षा पद्धति को ही बौद्ध शिक्षा के नाम से पुकारा गया। अतः इन संघों को ही शिक्षा देने का अधिकार था।

बौद्धकालीन शिक्षा निम्नलिखित दो स्तरों में देखी जाती है-

1. सार्वजनिक तथा प्राथमिक शिक्षा
2. उच्च शिक्षा।

सार्वजनिक शिक्षा की रूपरेखा हमें जातक कथाओं से प्राप्त होती है, जिसके प्रमुख केन्द्र हमें बौद्ध मठ दिखाई पड़ते हैं। शुरू में जिनका रूप धार्मिक था, बाद में इनका रूप हमें मौलिक दिखाई पड़ता है। इन शिक्षा केन्द्रों में पाली भाषा में शिक्षा दी जाती थी तथा उच्च शिक्षा केवल बौद्ध भिक्षुओं को दी जाती थी।

इस शिक्षा के प्रमुख केन्द्र मठ थे तथा इस शिक्षा के साथ-साथ सामान्य विषयों का अध्ययन भी कराया जाता था। विद्यार्थी को सर्वप्रथम धर्म, ज्योतिष, व्याकरण, दर्शन तथा औषधिशास्त्र आदि विषयों को पढ़ाया जाता था। इसी के साथ-साथ किसी एक विषय में विशेष योग्यता प्राप्त की जाती थी। उच्च शिक्षा के केन्द्रों में नालन्दा विश्वविद्यालय, तक्षशिला, शिक्रग्रशिला, बल्लभी ओदन्तपुरी, नदिया, जग ढकल्ला तथा सारनाथ विशेष रूप से उल्लेखनीय थे। इन शिक्षा संस्थाओं का संचालन होता था उसी की अधीनता में विभिन्न विषयों को पढ़ाया जाता था। इसके नीचे विभिन्न विषयों के उपाध्याय होते थे, बड़े-बड़े राजा-महाराजा, धनी वर्ग इनको दान दिया करते थे जिनसे इन शिक्षा केन्द्रों के खर्चों को पूरा किया जाता था। इन विश्वविद्यालयो में भारतीय तथा विदेशी विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करते थे।

बौद्धकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषतायें - बौद्धकालीन शिक्षा की निम्न लिखित विशेषतायें उल्लेखनीय हैं।

1. सब जाति के लोग बौद्ध शिक्षा के अंतर्गत शिक्षा प्राप्त कर सकते थे। बालक एक साथ शिक्षा पाते थे। उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं था। ब्राह्मण तथा क्षत्रिय वर्णों के विद्यार्थियों की संख्या अधिक थी।

2. बौद्ध विद्यालयों व निम्न प्रकार के लोगों के बच्चों को शिक्षा नहीं दी जाती थी-

(i) जो किसी राजा की नौकरी करता हो, राज्य की ओर से उसको दण्ड मिला हो।

(ii) जो व्यक्ति जेलखाने से भाग गया हो।
(ii) डाकुओं के बच्चों को।

(iii) लंगड़े, लूले, अपाहिजों आदि बालकों को शिक्षा नहीं दी जाती थी।

(iv) कोढ़ी, तपेदिक के रोगी बच्चों को भी इन विद्यालयों में प्रवेश नहीं दिया जाता था।

(v) दास तथा कर्जदार के बच्चों को इन विद्यालयों में दाखिला नहीं दिया जाता था।

3. बौद्ध शिक्षा में प्रवेश के लिए अवज्य या अवज्या को संस्कार का पालन करना पड़ा था। विद्यार्थियों को अपने सिर के बाल मुड़वाना अनिवार्य था। पीले वस्त्र पहनाये जाते थे और मठ के भिक्षुओं के चरणों में माथा भी टेकना पड़ता था।

4. इस संस्कार के पश्चात बौद्ध शिक्षा पाने वाले विद्यार्थियों को दस नियमों का पालन करना आवश्यक था। दस नियम निम्न लिखित थे-

(i) अशुद्धता से दूर रहना।
(ii) चोरी न करना।
(iii) जीव हत्या न करना।
(iv) मादक वस्तुओं का सेवन न करना।
(v) श्रृंगार प्रसाधनों का प्रयोग न करना।

(i) नृत्य, संगीत, तमाशा आदि न देखना।
(ii) ऊंचे बिस्तर पर न सोना।
(iii) सोने, चांदी का दान न लेना।
(iv) वर्जित समय पर भोजन करना।
(v) असत्य भाषण न करना।

5. उपसम्पदा के अंतर्गत 8 से लेकर 12 वर्ष तक छात्र विद्या प्राप्त करते थे। उसके बाद उप सम्पदा संस्कार किया जाता था और फिर वह भिक्षु के रूप में संघ में प्रवेश करता था।

6. छात्र 22 वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करता था। 12 वर्ष तक प्रवज्या और 10 वर्ष तक सम्पदा का समय था।

वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा व्यवस्था की तुलना - दोनों शिक्षा व्यवस्था में हमें निम्नलिखित समानतायें दिखाई देती हैं -

1. भिक्षा मांगना - वैदिक काल तथा बौद्धकालीन के विद्यार्थी भिक्षा मांग कर अपना पेट भरा करते थे। विद्यार्थी उतनी ही भोजन सामग्री जमा करते थे जो उनके एक दिन के लिए हो।

2. वृक्ष के नीचे निवास करना - दोंनों शिक्षा पद्धतियों के विद्यार्थी पेड़ों के नीचे निवास किया करते थे।

3. प्रवेश संस्कार - दोनों प्रकार के विद्यार्थियों को शिक्षा आरम्भ करने से पूर्व प्रवेश संस्कार होता था। उसके बाद ही दोनों प्रकार के विद्यार्थी पढना-लिखना सीखा करते थे।

4. गुरु का स्थान - शिष्य सम्बन्धों पर बल दिया जाता था। गुरु विद्यार्थियों के लिए पिता के समान थे और गुरु प्रत्येक छात्र को अपना समझते थे।

5. गुरु दक्षिणा - दोनों शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई-लिखाई के समाप्त होने पर गुरु को भेंट देने की प्रथा प्रचलित थी।

6. मौखिक परीक्षा - दोनों शिक्षा पद्धतियों में मौखिक परीक्षा एक समान रूप में प्रचलित थी।

7. शारीरिक तथा पवित्रता बल देना - दोनों शिक्षा पद्धति में शारीरिक पवित्रता पर एक समान बल दिया जाता था।

दोनों में इतनी समानतायें होते हुए भी दोनों शिक्षा व्यवस्था में हमें निम्नलिखित अन्तर दिखाई देते हैं-

1. वैदिक शिक्षा का केन्द्र गुरु का घर होता था जबकि बौद्ध शिक्षा का केन्द्र विहार था।

2. वैदिक शिक्षा पद्धति पारिवारिक प्रणाली पर आधारित थी, परन्तु बौद्ध शिक्षा पद्धति संघ पर आधारित थी।

3. वैदिक पद्धति में गुरु तथा शिष्य के सम्बन्ध अधिक श्रेष्ठ थे।

4. वैदिक शिक्षा में धन की कमी थी, परन्तु बौद्ध शिक्षा पद्धति में धन की प्रचुरता थी।

5. वैदिक काल में शिष्य बोलकर भिक्षा मांगते थे परन्तु बौद्ध शिक्षा और व्यवस्था के विद्यार्थी मौन रहकर भिक्षा मांगते थे।

6. वैदिक काल में शिक्षक केवल ब्राह्मण होते थे जबकि बौद्ध शिक्षक किसी भी वर्ण या जाति के हो सकते थे।

7. वैदिककाल में शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी परन्तु बौद्ध काल में शिक्षा का माध्यम पाली तथा अन्य क्षेत्रीय भाषायें थीं।

दोनों शिक्षा पद्धतियों के विद्यार्थियों के लिए विलास की वस्तुओं पर प्रतिबन्ध था। उन्हें अपने-अपने विद्यार्थी जीवन में कष्ट सहने की शिक्षा दी जाती थी ताकि वे अपने भविष्य के जीवन में कष्टों को वीरतापूर्वक मुकाबला कर सकें। दोनों प्रकार के विद्यार्थी अहिंसा पर पूर्ण रूप से विश्वास किया करते थे। वे ऐसा कोई भी कार्य अपने विद्यार्थी जीवन में नहीं करते थे, जिससे किसी को दुःख पहुंचे। दोनों शिक्षा विधियों के अंतर्गत विद्यार्थियों की शिक्षा प्रारम्भ करने की निश्चित आयु थी। उससे पूर्व उनको पढाया लिखाना उचित नहीं समझा जाता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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